लौहनगरी जमशेदपुर में बिल्डिंगों के अवैध निर्माण का सबसे बड़ा कारण है राजनीतिक हस्तक्षेप 

– पीआईएल 1246 भवनों की जांच के लिए हाईकोर्ट ने बनाई तीन सदस्यीय समिति

 

– हाईकोर्ट के आदेश का पालन करना जमशेदपुर अक्षेस विभाग को पड़ा भारी, 13 होमगार्ड जवान सस्पेंड, सिटी मैनेजर को बनाया क्लर्क

 

जमशेदपुर : लौहनगरी जमशेदपुर में बन रहे बिल्डिंगों के अवैध निर्माण का सबसे बड़ा और मुख्य कारण राजनीतिक हस्तक्षेप है और यह हमेशा से चलता आ रहा है। जिसकी सत्ता, उसके नेता और उसी का बोलबाला शहर में चलता आ रहा है और जो आज भी कायम है। अगर ऐसे में किसी अधिकारी द्वारा किसी राजनीतिक पार्टी के विरुद्ध जाकर कारवाई की जाती है तो उसे अविलंब कुर्सी से हटा दिया जाता है। ऐसा ही एक मामला बीते दिनों जमशेदपुर अक्षेस विभाग के उप नगर आयुक्त रवि प्रकाश के साथ घटा है। उन्होंने सिर्फ स्थानीय पावरफुल राजनीतिक पार्टी के संबंधित नेता की बात नहीं मानी। जिसका नतीजा यह हुआ कि उन्हें अविलंब पद से हटाकर उनकी जगह दूसरे को बैठा दिया गया। जबकि उनके पदभार लिए कुछ ही माह हुए थे। अब ऐसे में अधिकारी कारवाई करें तो करें क्या। जानकारी के अनुसार जमशेदपुर अधिसूचित क्षेत्र समिति (जेएनएसी) अंतर्गत अवैध निर्माण की जांच के लिए बीते 6 अप्रैल शनिवार को झारखंड हाईकोर्ट द्वारा भेजी गई एक उच्च स्तरीय समिति ने अपनी जांच शुरू की। इस दौरान एसडीएम पारुल सिंह और जेएनएसी के उप नगर आयुक्त कृष्ण कुमार ने समिति के सदस्यों को पूरा सहयोग भी किया। जांच के क्रम में समिति ने बिस्टुपुर स्थित होटल सेंटर पॉइंट और होटल सोनेट समेत कई प्रतिष्ठानों की जांच की। जिसमें समिति ने कई अनियमितताएं भी देखी। वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता आरएन सहाय के नेतृत्व में अधिवक्ता सुदर्शन श्रीवास्तव और पांडे नीरज राय के साथ टीम ने स्थिति का आंकलन भी किया। मौके पर उन्होंने भवन का नक्शा, निर्माण और पार्किंग व्यवस्था की जांच में गंभीर कमियां भी पाई। समिति ने देखा कि किसी भी इमारत में पर्याप्त पार्किंग स्थान उपलब्ध नहीं है। जिसके कारण सड़कों पर वाहनों के पार्किंग से भीड़भाड़ की स्थिति है। साथ ही बिना अनुमति के बेसमेंट और बैंक्वेट हॉल का व्यावसायिक उपयोग किया जा रहा है। जिसके बाद कानूनी टीम ने अपनी जांच के निष्कर्षों पर प्रकाश डालते हुए झारखंड हाईकोर्ट को एक व्यापक रिपोर्ट सौंपने का वादा किया। इस दौरान एसडीएम पारुल सिंह ने झारखंड उच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन करने की बात कहते हुए जांच टीम को पूरा सहयोग करने का आश्वासन भी दिया। साथ ही उन्होंने सभी आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराने पर जोर देते हुए उनके सहयोग में किसी भी तरह की कमी से इंकार किया। बताते चलें कि शहर के रहने वाले राकेश झा द्वारा झारखंड हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई थी। जिसके आलोक में यह जांच शुरू हुई है। साथ ही दायर पीआईएल में अवैध निर्माण और पार्किंग सुविधाओं की अनुपस्थिति का आरोप लगाया गया है। जिसे कथित तौर पर जेएनएसी, प्रशासन और टाटा स्टील भूमि विभाग की मिलीभगत से बढ़ावा दिया गया है। झारखंड उच्च न्यायालय ने मामले का संज्ञान लेते हुए एक स्वतंत्र जांच शुरू की। जिसमें इस मुद्दे पर सुनवाई चल रही थी। वहीं झारखंड हाईकोर्ट ने जमशेदपुर में अवैध तरीके से बनाए गए भवनों की जांच के लिए वकीलों की कमिटी भी गठित की है। जिसका गठन हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा व जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ ने किया। आरोप है कि जमशेदपुर में नोटिफाइड एरिया कमेटी और जिला प्रशासन की मिलीभगत से नियमों की अनदेखी कर 1246 भवनों का निर्माण कराया गया है। जिसके तहत वर्ष 1998 से अब तक बने भवनों की जांच की जाएगी। इसी जांच के बाद जमशेदपुर अक्षेस विभाग की टीम बीते शुक्रवार की दोपहर बिस्टुपुर थाना अंतर्गत डायगनल रोड में अवैध निर्माण के विरुद्ध अभियान चलाने के लिए पहुंची। जहां व्यवसायियों के विरोध करने पर मामला बिगड़ा और फिर टीम ने व्यवसायियों को दौड़ा दौड़ा कर बेरहमी से पीटा। जिसके बाद मामले ने तूल पकड़ा और सभी राजनीतिक पार्टियों ने एक स्वर में व्यवसायियों का समर्थन करते हुए टीम की कार्रवाई का विरोध करते हुए कारवाई की बात कही। जिसका नतीजा यह हुआ है मामले में शामिल 13 होमगार्ड जवानों को सस्पेंड कर दिया गया। साथ ही विभाग के सीटी मैनेजर रवि भारती को पद से हटाकर कार्यालय में क्लर्क का काम देखने का आदेश दे दिया गया। इस पूरे प्रकरण में अधिकारियों के लिए आगे कुआं और पीछे खाई वाली कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है। करो तो भी कारवाई और न करो तो भी कारवाई। हालांकि हम टीम द्वारा की गई कार्रवाई का समर्थन नहीं कर रहे हैं। मगर इनके बारे में किसी ने सोचा तक नहीं। पूरे लौहनगरी जमशेदपुर में सबसे ज्यादा अवैध निर्माण के मामले कदमा, सोनारी और बिस्टुपुर क्षेत्र में है। इसके अलावा मानगो, गोलमुरी और सीतारामडेरा समेत अन्य क्षेत्रों में भी अवैध निर्माण का बोलबाला है। जिन 1246 भवनों में हाईकोर्ट ने विभाग से कारवाई करने की बात कही है। इनमें से 90 प्रतिशत भवन मालिकों को राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त हैं और जो अवैध निर्माण का सबसे बड़ा कारण भी है। विभाग ने कई बार भवन मालिकों को स्वत: अतिक्रमण हटाने का नोटिस भी दिया। मगर राजनीतिक पहुंच के चलते भवन मालिकों ने नोटिस को रद्दी से ज्यादा कुछ नहीं समझा। सभी भवनों मालिकों की अपने अपने क्षेत्र के राजनीतिक पार्टियों से ऐसी सांठगांठ है कि कारवाई होने से पहले ही पैरवी हो जाती है। इसमें कोई भी राजनीतिक पार्टी अछुता नहीं है। अब इसे विभाग की मंजूरी समझे या फिर मजबूरी। जबकि वर्तमान में भी विभाग की कार्रवाई में राजनीतिक हस्तक्षेप बदस्तूर जारी है। अगर अवैध निर्माणों पर रोक लगानी है तो सबसे पहले राजनीतिक संरक्षण पर रोक लगानी होगी। नहीं तो माननीय हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करना चाहकर भी विभाग इन कारणों से पालन नहीं कर पाएगी।

Related posts